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A Modest Tribute

रूठ के हमसे यूँ चले गए, आपकी याद में यह दिल रो रहा है; ख़ामोशी से यह क्या ग़ज़ल कह गए, कि दिल का हर साज़ बेसुर हो रहा है. ज्ञान का सागर था बहता झर-झर, पर हम प्यासे भटकते इधर-उधर; न कुछ लिया आपसे, न कुछ कर सके आपको अर्पण, और आपके अंतिम आशीष को तरसते हम मूढ़-मन! "नारायण हरि " का नाम आपके मधुर स्वर में, अब केवल गूँज रह गई है हमारे इन कर्णों में ; शिष्टाचार, आचार-विचार, सब आप ही से सीखा हमने, पर अब इस जीवन को कैसे सुधारें ,बिन उत्तम-मार्गदर्शन के. आयु बीत जाती है, एक गुरु-दीक्षा कमाने में, पर हमारे गुरु तो आए थे  'टाठाजी ' के बहाने में; न अब गुरु रहे, न गुरु-ज्ञान, न गुरु की वाणी रही, न गुरु-प्रेम; अब तो बिन ताल ही स्वर सजाने हैं जीवन के तराने में. Translation : You went away from me, like you were upset, Your memories make my heart weep; You’ve silently spoken a verse, And no note of the heart’s music suits it. An ocean of knowledge was gushing by me, But ignorant of my thirst, I roamed hither and thither; Never benefited